श्री फलौदी चालीसा
श्री फलौदी चालीसा पीत वस्त्र , सर मुकुट बिराजे , श्वेत कमल की माला साजे| गदा ,पद्म कर शोभित माता ,अक्षय पात्र खडग शोभाता || सिंह सवारी शोभा न्यारी ,कल्याण दायिनी मातु हमारी | अभिषेक दुग्ध केसरिया राजे,मुस्कान सदा मुख पर है साजे || धूप,दीप,पंच मेवा ,नारियल ,फलदायी सब को तुम माता | जगमाल चह्यो गिरिजा को मेला ,स्वीकृति दे मण्डलेश्वर भुला | गौतम ऋषि ने आज्ञा दीन्ही ,जगमाल रजा सर धर लीन्ही| पुण्य दिवस जब बसंत पंचमी ,शिव मंदिर में जाग्रति किन्ही | अर्द्ध रात्रि में हुई नभ वाणी ,हर्ष दायिनी परम सुहानी | "काज तुम्हारे हम सारेंगे |" गिरिजा शंकर आशिष दीन्ही | मण्डलेश्वर नृप क्रोधित होकर ,जगमाल कियो सेवा से बाहर| सम्वत इकतालीस सुहायो ,जगमाल परम दुल्हन ने लाया | जैन राज मण्डलेश्वर आया ,वर जगमाल का शीश कटाया | क्रंदन रुदन कियो अति भारी,सती चिता पर कीन्ह सवारी | प्रगटी तब तुम मात भवानी ,हुँकार भरी तब सिंह वाहिनी | मण्डलेश्वर का मस्तक काटा ,चतुर हस्त पद्मासन ठाटा| विनती दुल्हन की सुनी ,प्रसन्न हुई तुम मातु , गौतम ऋषि से तब कही ,जोड़ो धड सिर साथ | शंकर अमृत तब मुख डाला ,तन में तब नव हुआ ...